एक ठिठुरता सिमटा सा वो ख्वाब हथेली पे रखके ,
फिर वो खुशबू वापस घुल गयी जाने कब उस बारिश में
नज़र ना उस खिड़की से लौटी ठिठका दिल न फिर धड़का,
मन का कुकनुस सुलग रहा है तब से अब उस बारिश में ...
शहर रुका सा, हवा थकी सी, दिन उलझा सा, रात थमी
मद्दम चाँद और बेहिस तारे रात के पल्लू से उखड़े
गुल पे ना कोई तितली बैठी डाल पे ना कोयल कूकी
सन्नाटा चीखे और गूंगे बाकी सब उस बारिश में..
इक नाकाम सी हसरत ले के कोई कितनी देर जिए
अश्क का मोती मोती गिनते कैसे पूरी उम्र कटे
शेयरों में क्या असर हो मेरे नग्मों में क्या रंग भरूँ
रौनक की रंगोली सारी धुल गयी जब उस बारिश में...
फिर वो खुशबू वापस घुल गयी जाने कब उस बारिश में
नज़र ना उस खिड़की से लौटी ठिठका दिल न फिर धड़का,
मन का कुकनुस सुलग रहा है तब से अब उस बारिश में ...
शहर रुका सा, हवा थकी सी, दिन उलझा सा, रात थमी
मद्दम चाँद और बेहिस तारे रात के पल्लू से उखड़े
गुल पे ना कोई तितली बैठी डाल पे ना कोयल कूकी
सन्नाटा चीखे और गूंगे बाकी सब उस बारिश में..
इक नाकाम सी हसरत ले के कोई कितनी देर जिए
अश्क का मोती मोती गिनते कैसे पूरी उम्र कटे
शेयरों में क्या असर हो मेरे नग्मों में क्या रंग भरूँ
रौनक की रंगोली सारी धुल गयी जब उस बारिश में...
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