घड़ी दो घड़ी को ठहर के मैं तुझे देख के चला जाऊँगा
तू ना दाद दे मुझे प्यार कर तुझे हाल-ए-दिल सुनाऊँगा
मुझे छेड़ मत किसी साज़-सा मुझे ज़ेहन-ओ-दिल में संभाल ले
मैं तो एक ख़ुशनुमा ख़याल हूँ जो गुज़र गया तो ना आऊँगा l
मैं हवा में बिखरी महक- सा हूँ तेरे शहर को इसपे एतराज़ है
तुझे प्यार है तो मेरे साथ चल मैं यहाँ पे रुक ना पाऊँगा l
तेरी जुस्तजू में मेरा वजूद बुत-ए-संग सा ग़र हो गया
तू जो भर के नज़र मुझे देख ले उसी पल पिघल भी जाऊँगा
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