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Sunday 3 February 2013

कौन कहे कविता


काग़ज़, कलम और कवि भी मैं ही
मैं ही छंद हूँ,
कविता भी मैं
हालांकि ना कथन है कोई
कोई शब्द ना कोई अर्थ
कहने को कोई बात नहीं
बात की कोई ज़ात नहीं
अब ना सब की बातें कर
अब ना रब की बातें कर
बात की कोई बात नहीं l

जिसे कहूँ कोई गीत नहीं
जिसे सुनूँ, संगीत नहीं
द्वेष नहीं है प्रीत नहीं
ना अंधकार
ना ओज है कोई
रात नहीं प्रभात नहीं
अब ना सब की बातें कर
अब ना रब की बातें कर
बात की कोई बात नहीं

थमा हुआ है मन का मंथन
सोया हुआ है कोलाहल
अपना ही इक कलरव-सा है
जैसे मिलता जल से जल
जैसे सूर्य से अंकुर मिलता
प्रतिबिंब से मिले कमल
पुष्प क्या जाने क्या है कविता
कविता जैसी बात नहीं
अब ना सब की बातें कर
अब ना रब की बातें कर
बात की कोई बात नहीं
कहने को कुछ बात नहीं

--- सुरमीत